क्या नीतीश कुमार सेठिया गए हैं
जी हां, यही सच्चाई है। हर इंसान का बुढ़ापा आता है और ऐसा लग रहा की हमारे प्रिय मुख्यमंत्री का भी यही समय आ गया है।
कई दिनों से मिल रहे थे संकेत
2020 के चुनावी नतीजों के बाद से नीतीश कुमार के व्यवहार में बदलाव समय समय पर निकल कर सामने आते रहा है।
तेजस्वी यादव के साथ बहस: सबसे पहले विधान सभा में उन्होंने अपना आपा खोया और तेजस्वी यादव को बुरा भला कहने लगे। इसके बाप को मैने मुख्यमंत्री बनाया, दोस्त का बेटा है इसलिए चुप रहते हैं। हालांकि उनके इस वक्तव्य में भाषा की शालीनता अभी भी बरकरार थी इसलिए इसपर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।
विधान सभा में विधायकों की पिटाई: बिहार विधान सभा में हंगामा होना कोई नई बात नही। पहले भी लोग स्पीकर के टेबल तक आते थे विरोध करने। पर इस बार विधायक जी ने स्पीकर से विधेयक ले फाड़ डाला और टेबल को भी नही बक्षा। इसपर क्रोधित हो मुख्यमंत्री ने पुलिस से विधायकों को उठवाकर बाहर रखवा दिया। पर बात इतनी पर नही रूकी। सुरक्षा बलों द्वारा विधायकों को पुलिस की मार भी झेलनी पड़ी।
मीडिया के साथ गुस्सा करना: समय समय पर नीतीश कुमार मीडिया से क्रोधित होते हुए एवं अपना आपा खोते हुए दिखाई दिए हैं। और मीडिया वालों ने इसको खूब भुनाया भी है और टीआरपी भी बटोरी है।
समय समय पर युवाओं पर कमेंट: अभी बच्चा है। नए लोगों को समझाइए की पहले क्या था और हमने क्या किया। अरे समझो कुछ सीखो। समय समय पर युवाओं और उनके बीच की खाई तो नजर आ ही रही थी, साथ ही साथ युवाओं पर उनका गुस्सा भी समय समय पर बाहर आता रहा है।
भरी सदन में सेक्स ज्ञान: युवाओं के नजरिए से जो ज्ञान नीतीश जी ने दिया उसमे कोई गलत चीज नही कही। बस क्रूड भाषा का इस्तेमाल किया। ऐसा लग रहा की पुराने नीतीश जी की शालीनता अब रिटायरमेंट ले चुकी है। हालांकि उनके इन बातों पर है तौबा मचाना भी हाइपोक्रिसी एवं ओछी मानसिकता को दर्शाता है। इसपर ज्यादा दिमाग लगाने से फायदा नही है।
मांझी जी पर आग बबूला: मांझी जी क्यों सीएम बने और किस तरह के सीएम थे यह बात बिहार में किसी से छुपी नहीं है। और मांझी जी जो सदन में बोल रहे थे, भले ही वो हमेशा की तरह निहायती बकवास कर रहे हों, पर उनको इस तरह जलील करना नीतीश कुमार जैसे शालीन व्यक्ति को शोभा नहीं देता। जो भी हो अगर जाति से हम ऊपर उठकर देखें तो मांझी जी को जितना के वो हकदार थे उससे कही ज्यादा मिल गया था, पर उनको या किसी को भी ऐसा नहीं बोला जाना चाहिए। इस भावना को दूसरे तरीके से व्यक्त किया जा सकता था। अगर पुराने नीतीश कुमार होते, तो वह इस चीज को बेहतर करते।
उम्र का असर या युवाओं को लुभाने की कोशिश
हो सकता है की नीतीश कुमार पर उम्र का असर हो रहा हो या फिर यह भी हो सकता है की वह नई जेनरेशन से कनेक्ट करने को ये सब ड्रामे कर रहे और अपने व्यवहार तक में बदलाव लेकर आ गए। क्योंकि पिछले चुनाव में युवा वर्ग ही उनसे सबसे ज्यादा नाराज था और उनको अपनी प्रासंगिकता के लिए सबसे ज्यादा उन्ही में जगह बनाने की जरूरत है।
नीतीश कुमार के बाद क्या होगा
फिलहाल तो जो हालात हैं, उन्हे देखकर ऐसा ही लग रहा की पोस्ट नीतीश बिहार का राजनीति अब दो धुरी बनने वाली है। एक तरफ तेजस्वी यादव अपने वोट बैंक के साथ होंगे और एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अपने कॉम्बिनेशन के साथ। और उनके बीच लड़ाई होगी युवा, अतिपिछड़ा एवं कुछ सवर्ण वोट की। देखना ये होगा की नीतीश के बाद नॉन यादव ओबीसी का कुछ वोट तेजस्वी अपने पास कर पाते हैं या फिर भाजपा क्लीन स्वीप कर ले जायेगी यूपी की तरह बिहार को भी। और बिहार के विकास एवं युवा के लिए बेहतर किसे माना जाता है, भाजपा को या फिर तेजस्वी को।
बाकी प्लेयर्स का क्या हाल होगा
उपेंद्र कुशवाहा अगर जदयू में होते तो हालत अलग हो सकते थे, पर अभी जैसा दिख रहा, वह कहीं के भी नही लग रहे और ऐसा लगता है की भाजपा ने उनको ठिकाने लगा दिया है।
चिराग पासवान को वहम ऐसा रहा है की सवर्ण उनका वोट बैंक बन जायेंगे। पर फिलहाल तो वह भी अपने पासवान वोट बैंक से आगे जाते नही दिख रहे।
जीतन राम मांझी तो पहले से ही हवा हवाई थे, उनकी बात करने का कोई फायदा नही क्योंकि वो तो शुरू से भाजपा के मोहरे मात्र थे।
मुकेश सहनी अपने प्रयास कर रहे और देखने वाली बात होगी को वो कहा तक जाते हैं। अपनी जाति पर तो उनकी पकड़ बढ़ती दिख रही है लेकिन अपनी जाति के अलावा वह कितना जोड़ पाएंगे खुद में यह भी देखने वाली बात होगी।
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