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Redefining socialism in India

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Ever since the RSS leader called for removing socialism and secularism from the Constitution’s preamble, left-wing leaders have used this opportunity to grab public attention, legitimize the inclusion of socialism, and thereby signify the importance of the left wing as a whole. What is the literal meaning of socialism? Normally, socialism means social ownership of economic enterprises ranging from small to large, which translates in real life to worker cooperatives and public sector undertakings. What is being signified? The message being given by the left front is that socialism is akin to a welfare state . In their interpretation of socialism, private enterprise is acceptable, but the government's aim should be the welfare of the people. What has the left wing achieved? Left-wing politics has influenced a wide range of policies—especially in social services like education and health—to be provided by the government. Policies targeting poverty reduction, employment gener...

क्या नीतीश कुमार सेठिया गए हैं

जी हां, यही सच्चाई है। हर इंसान का बुढ़ापा आता है और ऐसा लग रहा की हमारे प्रिय मुख्यमंत्री का भी यही समय आ गया है।  कई दिनों से मिल रहे थे संकेत 2020 के चुनावी नतीजों के बाद से नीतीश कुमार के व्यवहार में बदलाव समय समय पर निकल कर सामने आते रहा है।  तेजस्वी यादव के साथ बहस : सबसे पहले विधान सभा में उन्होंने अपना आपा खोया और तेजस्वी यादव को बुरा भला कहने लगे। इसके बाप को मैने मुख्यमंत्री बनाया, दोस्त का बेटा है इसलिए चुप रहते हैं। हालांकि उनके इस वक्तव्य में भाषा की शालीनता अभी भी बरकरार थी इसलिए इसपर किसी ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। विधान सभा में विधायकों की पिटाई : बिहार विधान सभा में हंगामा होना कोई नई बात नही। पहले भी लोग स्पीकर के टेबल तक आते थे विरोध करने। पर इस बार विधायक जी ने स्पीकर से विधेयक ले फाड़ डाला और टेबल को भी नही बक्षा। इसपर क्रोधित हो मुख्यमंत्री ने पुलिस से विधायकों को उठवाकर बाहर रखवा दिया। पर बात इतनी पर नही रूकी। सुरक्षा बलों द्वारा विधायकों को पुलिस की मार भी झेलनी पड़ी।  मीडिया के साथ गुस्सा करना : समय समय पर नीतीश कुमार मीडिया से क्रोधित होते हुए एव...

Knowledge is Virtue - Thoughts of Socrates

Knowledge is necessary for virtue: As per Socrates, knowledge is necessary to achieve excellence(or virtue). Be it a shoemaker, to make good shoes he must have knowledge of what good shoes are and how to make them. Similarly for life in general,  to lead a good life, one needs knowledge of what a good life is composed of. Knowledge will definitely lead to virtue: Also if one has and truly has the knowledge of which actions make for a good life, he shall not do otherwise and shall only take actions that lead to a good life, hence signifying that knowledge will lead to virtue and attaining knowledge is attaining virtue hence, knowledge is virtue. What is a good life? Good life is not pleasure: Some contemporary teachers of Socrates called 'Sophists' preached that the way to attain happiness in life is to pursue the pleasures of it. It is to gain wealth, power, fortune, etc. Sophists preached that doing these was akin to attaining virtue.  Socrates however differed from this. ...

बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का सस्ता नारा

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हालांकि 2020 का बिहार चुनाव बीते काफी समय हो गया, पर हाल की घटनाओं ने एक बार फिर उस ओर हमारा ध्यान इस ओर किया है। उस चुनाव में अलग अलग पार्टियां अपने अपने एजेंडे और चुनावी वादे लेकर मैदान में उतरे थे।  जेडीयू की ओर से सात निश्चय पार्ट 2 की बात की गई, तो राजद ने 10 लाख सरकारी नौकरी की बात रखी जिसपे बीजेपी ने 19 लाख रोजगार सृजन का वादा कर दिया। इन सब के बीच, बिहार की जनता में अच्छे वोट की पकड़ रखने वाली लोजपा ने भी अपना चुनावी फॉर्मूला रखा और बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट का नारा दिया।  बिहार चुनाव के नैरेटिव की कहानी इस नारे के कॉन्टेक्स्ट में यह बात पे ध्यान देना जरूरी है कि 2020 में नीतीश राज के 15 साल पूरे हुए थे और उन्होंने बिहार में इतने समय में आखिर क्या खास कर लिया पर बहस छिड़ी थी। इसमें जेडीयू की ओर से विकास के कार्य की एक लंबी लिस्ट दी जा रही थी और नीतीश कुमार की विकास पुरुष वाली इमेज पर फिर से सवारी करने को तैयारी हो रही थी। ऐसे में जेडीयू में ही एक समय काफी ऊंचे स्थान पर रहने वाले प्रशांत किशोर एक नया तर्क सामने रखते है की नीतीश कुमार चाहे जितना विकास का दावा कर ले, पर ...

पीके के मन में आखिर क्या है / जाने पीके की मास्टर स्ट्रेटजी

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'अंड बंड बोलता रहता है ' - बिहार के मुख्यमंत्री ने यह जवाब दिया जब उनसे पूछा गया प्रशांत किशोर के वक्तव्य के बारे में। आम तौर पर शांत रहने वाले मुख्यमंत्री आखिर प्रशांत के मामले में भावुक क्यों हो जा रहे? आइए आज हम पीके की कहानी जानते हैं और एक राजनेता के रूप में भी उनकी पड़ताल करते हैं। प्रशांत का इतिहास यह है कि वो पेशेवर रूप से राजनीतिक कैंपेन का काम संभाला करते थे। इसके लिए उनकी एक कंपनी थी: ।  2014 में ये नरेंद्र मोदी के कैंपेन का हिस्सा बने और वहा से इन्होंने अपने लिए एक नाम बनाया।  फिर 2015 में महागठबंधन के कैंपेन में ये हिस्सा बने और वहा भी इनको सफलता मिली। इसके बाद उन्होंने जनता दल यू पार्टी को ज्वाइन किया। नीतीश कुमार ने इनके अंदर कोई न कोई ऐसी बात देखी कि इनमे भी उनको अपनी लिगेसी का एक हिस्सा दिखाई देने लगा। कुछ ही समय में पीके को जेडीयू का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया गया। यह मालूम होना चाहिए की पीके ही एकमात्र उपाध्यक्ष नही थे, उनके अलावा भी जेडीयू में कई उपाध्यक्ष उस वक्त भी थे और आज भी हैं। यहा तक तो पीके बड़े आराम से आगे बढ़ते रहे, पर इसके आगे जदयू के पुराने ने...

तेजस्वी- नीतीश कैबिनेट में अगड़ी जातियों एवं यादवों का बोल बाला

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हल ही में अपने ए टू जेड के नारे को हवा देने वाले तेजस्वी यादव ने इस बार अपने कुनबे में नया प्रयोग को इजहार किया है। अपने इस प्रयोग से उन्हें उम्मीद है की बिहार में अपनी पार्टी के समीकरण को वो नया स्वरुप दे पाएंगे।    भूमिहारों पर है फोकस बोचहा उपचुनाव, एमएलसी चुनाव और अब कैबिनेट का गठन, इतना ही नहीं, इनके बीच में की गयी सभाएं राष्ट्रीय जनता दाल एवं भूमिहार समाज के बीच में एक नयी केमिस्ट्री की कहानी बयां कर रही है। खबर तो यह भी है की तेजस्वी यादव सीटवार भी भूमिहार समाज के लोगों के एक हिस्से का वोट लेने की योजना पर भी काम कर रहे हैं।  दोनों तरफ से मिल रहे इशारे और मजे की बात तो यह है की यह प्रेम सिर्फ एक तरफ़ा नहीं दिख रहा।  बोचहा उपचुनाव के वक़्त भी इसका एक सैंपल हमें देखने को मिला है जब तथाकथित रूप से भूमिहार समाज के एक बड़े वर्ग ने राजद के लिए मतदान किया। कई जगहों पर भूमिहार यह कहते हुए भी दिखाई पड़ते हैं की अब राष्ट्रीय जनता दाल उनके लिए अछूत नहीं रही और सही कैंडिडेट होने पर राजद को वोट देने में उन्हें कोई समस्या नहीं है। अल्पसंख्यक को मिला उचित सम्मान भाजपा के द्वारा ...

CAA is Injustice with the persecuted minorities of Bangladesh

I welcome all minorities of Pakistan, regarding Afghanistan, I do not wish to comment upon that. But, regarding Bangladesh, do all people among minorities of there, that have come illegally to India, do all of them have come to save themselves from persecution? Or have some or many of them come here not because of persecution, but, in search of better employment and business opportunities? If it is so, how can you treat people who have come here to save their lives from persecution and those who search for better employment opportunities equally? Also, how can you discriminate between those bangladeshis who come here for job, treating some as legal and some as illegal? The same argument was given by Kerela Governer on a TV interview on 'Aap ki Adalat' show hosted by Mr. Rajat Sharma that those who come here in search of better employment and those who come here to save their lives are unequals, and unequals cannot be treated equally. That was a fair argument and I agree. ...